Wednesday, 4 August 2021

मुंशी प्रेमचंद की जीवनी 31 जुलाई

 

केंद्रीय विद्यालय लैंसडाउन

पुस्तकालय - रीडर्स क्लब

31 जुलाई - (मुंशी प्रेमचंद की जीवनी)

 

प्रसिद्ध नाम  मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand


जन्म  धनपत राय श्रीवास्तव, 31 जुलाई, 1880, लम्ही, उत्तर पश्चिम, ब्रिटिश भारत


पिता  अजीब लाल


माता  आनंद देवी


व्यवसाय   लेखक और उपन्यासकार


भाषा  हिंदी और उर्दू


राष्ट्रीयता  भारतीय


प्रसिद्ध लेख  गोदान, बाज़ार-ए-हुस्न, कर्मभूमि, शतरंज के खिलाडी, गबन


पत्नी- शिवरानी देवी


बच्चों के नाम  श्रीपत राय, अमृत राय, कमला देवी


मृत्यु  8 अक्टूबर 1936 को 56 वर्ष की आयु में वाराणसी, बनारस स्टेट, ब्रिटिश भारत

 

मुंशी प्रेमचंद Munshi Premchand भारत के महान लेखकों और उपन्यासकारों में से एक माने जाते हैं और वे 20वीं सदी में सबसे श्रेष्ठ लेखक थे।

वे एक उपन्यासकार, छोटी कहानी और निबंध लिखने वाले लेखक थे। उन्होंने 100 से भी ज्यादा छोटी कहानियाँ(Short Stories) लिखी है और 12 से भी अधिक उपन्यास (Novels)

उन्होंने कई साहित्यिक लेखों का हिंदी अनुवाद भी किया। उन्होंने अपना साहित्यिक कैरियर उर्दू में एक फ्रीलांसर(Freelancer) के रूप में शुरू किया। वे एक खुले मन वाले देशभक्त व्यक्ति थे।

वे अपने आरंभिक उर्दू के साहित्यिक लेखों में, भारत के विभिन्न भागों में चल रहे भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलनों के विषय में लिखा करते थे। बाद में उन्होंने हिंदी में अपना लेखन आरंभ किया।

उनके लेखों को पुरे भारत में पसंद और सम्मानित किया गया। बहुत जल्द उन्हें लोगों द्वारा सबसे ज्यादा चाहने वाले छोटी कहानी लेखकों और उपन्यासकारों में गिना जाने लगा। उनके लेखों में एक अलग ही बात थी क्योंकि उनके लेख ना सिर्फ लोगों को मजेदार लगते थे बल्कि उनसे समाज को भी कुछ अच्छा सन्देश और ज्ञान मिलता था।

वे उस समय के महिलाओं पर हो रहे अमानवीय अत्याचारों से बहुत ही प्रभावित हुए थे इसलिए वे अपने ज्यादातर कहानियों में लोगों को भारतीय महिला की दुर्दशा को अपने शब्दों के माध्यम से दिखाते थे।

एक सच्चा देशभक्त होने के कारण उन्होंने महात्मा गाँधी जी के असहयोग आन्दोलनका साथ देते हुए अपना सरकारी नौकरी छोड़ दिया। बाद में वे प्रगतिशील लेखकोंके प्रथम प्रेसिडेंट के पद के लिए भी चुने गए थे।

प्रारंभिक जीवन Early Life

प्रेमचंद जी का जन्म 31जुलाई, 1880 को वनारस के पास एक गाँव लम्ही में, ब्रिटिश भारत के समय हुआ। उनका बचपन में नाम धनपत राय श्रीवास्तव रखा गया था। उनके पिता अजीब राय, पोस्ट ऑफिस में एक क्लर्क थे और माता आनंदी देवी एक गृहणी थी। प्रेमचंद जी के चार भाई बहन थे।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मदरसा, लालपुर में उर्दू और फारसी शिक्षा के रूप में लिया। बाद में उन्होंने अपनी अंग्रेज़ी की पढाई एक मिशन स्कूल से पूर्ण किया।

जब वे आठ वर्ष के थे तो उनकी माता की मृत्यु हो गयी थी। उनके पिताजी ने दूसरी शादी भी की थी।


 वे अपने सौतेली माँ से अच्छे से घुल मिल नहीं पाते थे और ज्यादातर समय दुखी और तन्हाई में

 गुजारते थे। वे अकेले में अपना समय किताबे पढने में गुज़रते थे और ऐसा करते-करते वे किताबों के

 शौक़ीन बन गए।

वर्ष 1897 में उनके पिता की भी मृत्यु हो गयी और उसके पश्चात प्रेमचंद ने अपनी पढाई छोड़ दी।

कैरियर Career

शुरुवात में उन्होंने ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। कुछ वर्ष ट्यूशन पढ़ाने के बाद वर्ष 1900 में उन्हें बहराइच के सरकारी जिला स्कूल में सहायक शिक्षक के पद के लिए प्रस्ताव मिला। इसी बिच उन्होंने अपना कथा लेखन भी शुरू किया था।

इसके बाद उन्हें नवाब रायके नाम से बुलाया जाने लगा। उन्होंने अपना पहला उपन्यास Novel “असरार-ए-माअबिदलिखा जिसमें उन्होंने मदिरों के पुजारियों के बिच चल रहे भ्रष्टाचार और महिलाओं के प्रति उनके यों शोषण से जुडी बातों को लोगों के सामने रखा। यह उपन्यास बनारस एक उर्दू साप्ताहिक आवाज़ ए खल्कमें श्रृखला के रूप में अक्टूबर 1903 से फरवरी 1905 तक प्रकशित की गयी।

वे 1905 में कानपूर चले गए और वहां वे ज़मानामैगज़ीन के संपादक, दया नरेन निगम, से मिले। एक अच्छा देशभक्त होने के कारण उन्होंने लोगों को भारत के आज़ादी के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरणा देती हुई कई कहानियाँ भी लिखीं।

ये कहानियां सबसे पहली छोटी कहानियों के संग्रह में प्रकाशित किये गए जिसका टाइटल 1907 में सोज़-ए-वतनदिया गया। जब इसके संग्रह के विषय में ब्रिटिश सरकार को पता चला तो उन्होंने अधिकारिक तौर पर इसपर प्रतिबंध लगा दिया और साथ ही इसके कारण धनपत राय को अपना नाम नवाब रायसे प्रेमचंदकरना पडा।

1910 के मद्य तक वे उर्दू के एक प्रमुख लेखक बन चुके थे और 1914 में उन्होंने हिन्दी भाषा में अपना लेख लिखना शुरू किया। वर्ष 1916 में प्रेमचंद, गोरखपुर के एक साधारण स्कूल में, सहायक शिक्षक बने। उसके बाद वे छोटी कहानियाँ और उपन्यास लिखने लगे। उन्होंने अपना पहला बड़ा उपन्यास 1919 में लिखा जिसका नाम था सेवा सदन

1921 में वे एक मीटिंग में गए जहाँ महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलनके तहत लोगों से सरकारी नौकरियों को छोड़ने का आग्रह किया। एक सच्चा देशभक्त होने के कारन उन्होंने अपना गवर्नमेंट जॉब छोड़ दिया। उस समय वे स्कूलों के उपनिरीक्षक थे।

नौकरी छोड़ने के बाद वे वाराणसी चले गए और अपने लेकन कैरियर पर ज्यादा ध्यान देने लगे। 1923 में उन्होंने अपना स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस शुरू किया जिसका नाम सरस्वती प्रेसरखा गया था। वहां उन्होंने दो मुख्य उपन्यास भी प्रकाशित किये जिनके नाम हैं निर्मला”(1925) और प्रतिज्ञा”(1927)। दोनों उपन्यास महिलाओं से जुदा हुआ था जैसे दहेज प्रथा और विधवा पुनर्विवाह जैसे सामाजिक मुद्दों पर।

वर्ष 1930 में उन्होंने एक साप्ताहिक पत्रिका हंसशुरू किया जो भारत के आज़ादी के संगर्ष को प्रेरित करने के लिए पर यह पत्रिका ज्यादा दिन तक नहीं चल सका।

वर्ष 1931 में प्रेमचंद जी ने मारवारी कॉलेज, कानपूर, में शिक्षक का काम किया पर कॉलेज प्रशासन के


 कुछ मतभेद के कारण उन्होंने यह नौकरी छोड़ दिया। वे दोबारा बनराज वापस लौटे और मर्यादा 


पत्रिका में संपादक के रूप में काम किया और कुछ दिनों के लिए कशी विद्यापीठ में हेड मास्टर के

 

पद पर भी काम किया।

पैसों की कमी को दूर करने के लिए वे 1934 में मुंबई चले गए और प्रोडक्शन हाउस अजंता सिनेटोनेमें स्क्रिप्ट लेखन का काम करने लगे। उन्होंने अपना पहला स्क्रिप्ट मजदूरफिल्म के लिए लिखा था। उन्होंने ज्यादा दिन तक स्क्रिप्ट लेखन का काम नहीं किया और छोड़ दिया हलाकि बोम्बे टाल्कीसके उन्हें बहुत मनाने का कोशिश भी किया।

साल 1935 में प्रेमचंद ने मुंबई छोड़ दिया और बनारस चले गए। वहां उन्होंने 1936 में एक छोटा सा कहानी प्रकाशित किया जिसका नाम है कफ़नऔर उसी वर्ष एक उपन्यास भी प्रकाशित किया जिसका नाम था गोदान। यह उनके कुछ मुख्य लेख थे जो उन्होंने सबसे अंत में लिखा था।

कृतियाँ

प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे उपन्यास सम्राटकी उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से कुछ अधिक कहानियाँ, ३ नाटक, १० अनुवाद, ७ बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है।

गोदान उपन्यास Godaan Novel

उनका यह उपन्यास गोदान Godaan” आधुनिक भारतीय इतिहास का एक महान उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में प्रेमचंद ने नारी के ऊपर हो रहे अत्यचार, निम्न वर्ग के शोषणऔद्योगिकीकरण जैसे मुद्दों के विषय में प्रस्तुत किया था।

निजी जीवन Personal Life

1895 में उन्होंने अपने दादा जी के द्वारा चुने हुए एक लड़की से 15 वर्ष की आयु में विवाह किया। उनकी पत्नी उनके साथ बहुत झगडा करती थी और उसके कारन वह प्रेमचंद को छोड़ कर अपने पिता के घर चली गयी। प्रेमचंद उसे कभी भी लेने नहीं गए।

बाद में उन्होंने वर्ष 1906 में एक बाल विधवा लड़की शिवरानी देवीसे विवाह किया। उन्हने ऐसा करने के लिए कई लोगों ने रोका पर उन्होंने किसी का नहीं सूना। उनके तीन बच्चे हुए श्रीपत राय, अमृत राय, कमला देवी।

मृत्यु Death

स्वास्थ्य ख़राब होने के कारण 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया।